One Nation One Election को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी, यह कैसे काम करेगा?

One Nation One Election: देश में एक बार फिर ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की चर्चा जोरों पर है। मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। आइए जानते हैं ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ क्या है और इसके लागू होने से क्या फायदे और नुकसान होते हैं।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘One Nation One Election‘ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है – बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली कमेटी ने इस पर मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पहले कदम में लोकसभा और राज्यसभा चुनाव को एक साथ कराना चाहिए। कमेटी ने सिफारिश की थी कि लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव हो जाने चाहिए।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का 2019 और 2024 के आम चुनावों में वन नेशन-वन इलेक्शन (One Nation One Election) घोषणापत्र का हिस्सा था,लेकिन विपक्ष ने इसकी कड़ी आलोचना की है, जिन्होंने संविधान में बदलाव और व्यावहारिक चुनौतियों पर चिंता जताई है।

प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने ट्वीट किया और इसे “हमारे लोकतंत्र को और अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम” बताया।

क्या है ‘One Nation One Election‘?

सरल भाषा में कहें तो इसका अर्थ यह है कि सभी भारतीय लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में – केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय प्रतिनिधियों को चुनने के लिए – एक ही वर्ष में मतदान करेंगे।

पीएम मोदी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) की वकालत करते आए हैं। उन्होंने कहा था कि चुनाव सिर्फ तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए, पूरे 5 साल राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही चुनावों में खर्च कम हो और प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ न बढ़े।

वर्तमान में, केवल कुछ ही राज्य, जिनका विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ होता हैं। ये कुछ राज्य हैं आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा, जिनमें से सभी ने अप्रैल-जून में हुए लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान किया था।

वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में एक दशक में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। हरियाणा में अगले महीने चुनाव होने हैं, झारखंड और महाराष्ट्र में भी इसी साल चुनाव होने हैं।

आजादी के बाद एक साथ हो चुके हैं चुनाव

भारत के लिए “One Nation One Election” यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

क्या कहा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पैनल ने?

हाई-प्रोफाइल पैनल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से “चुनावी प्रक्रिया (और) शासन में बदलाव आएगा” और “दुर्लभ संसाधनों का अधिकतम उपयोग होगा”, साथ ही 32 दलों और प्रमुख न्यायिक हस्तियों, जिनमें सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं, ने इस उपाय का समर्थन किया है।

One Nation One Election‘ के लिए लाभों में से एक यह है कि यह मतदाताओं के लिए चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाता है। पैनल ने तर्क दिया कि चुनावों को एक साथ करने से तेजी से आर्थिक विकास होगा, और इसलिए एक अधिक स्थिर अर्थव्यवस्था होगी, पैनल ने दावा किया कि चुनावों के एक दौर से व्यवसायों और कॉर्पोरेट फर्मों को प्रतिकूल नीति परिवर्तनों के डर के बिना निर्णय लेने की अनुमति मिलेगी।

सरकार ने तर्क दिया कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation One Election)‘ का जोर “नीतिगत पंगुता को भी रोकेगा”, और बार-बार होने वाले चुनावों के कारण “अनिश्चितता के माहौल” को दूर करेगा।

वन नेशन-वन इलेक्शन पर सरकार ने क्या कहा?

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि ‘वन नेशन-वन इलेक्शन‘ प्रणाली दो चरणों में लागू की जाएगी, जिसमें सभी चुनावों के लिए मतदाताओं की पहचान करने के लिए एक ही सूची होगी। उन्होंने आगे संवाददाताओं से कहा, “हम पुरे भारत में चर्चा शुरू करेंगे।” उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि प्रारंभिक वार्ता के दौरान 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ‘One Nation One Election‘ के समर्थन में बात कही।

वन नेशन-वन इलेक्शन देश के लिए क्यों जरूरी है, इसे समझें-

  • इससे जनता को बार-बार के चुनाव से राहत मिलेगी। चुनावी खर्च बचेगा।
  • इलेक्शन की वजह से बार बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी।
  • बार बार चुनाव कराने में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जो कम हो सकते हैं।
  • One Nation One Election से सरकारें को चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
  • One Nation One Election से प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा, गवर्नेंस पर जोर बढ़ेगा।
  • इसका बड़ा आर्थिक फायदा भी है। सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।

वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में चुनौतियां भी कम नहीं

  1. वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करना संविधान और कानून में बदलाव की सबसे बड़ी चुनौती है। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना चाहता है। इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा।
  2. अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं, जिनकी संख्या सीमित है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है।
  3. एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव होगा तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी।
  4. एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल बनकर सामने आएगा।
  5. इसके अतिरिक्त, इस बात की भी चिंता है कि क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं, जिससे राज्य स्तर पर चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

विपक्ष ने क्या कहा?

वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं, इस पर एक राय नहीं बन पा रही है। कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा।

पिछले सप्ताह वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा था कि वर्तमान संविधान के तहत ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रणाली संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए कम से कम पांच संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।

(Source- NDTV , indiatv.in)

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